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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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कमला कमलेश

नाम : कमला कमलेश
जनम : 20 अप्रेल 1938
स्थान : बारां जिला का जलवाडा गांव
शिक्षा : एम.ए., बी.एड.

रुचि
हाडोती, हिंदी मं कविता, ख्याणी संस्मरण, लेख

लेखन कार्य
1993 सरू

परकासण अर परसारण
दो पोथ्यां 'वांदना की बातां' अर राधा उपन्यास 'जागती जोत' 'माणक' आद पत्रिकावां मं परकासण आकासवाणी कोटा सूं लेख अर वारतावां को परकासण।

सेवा
शिक्षा विभाग मं 33 बरस तां अध्यापन को काम, वर्तमान मं निदेशक ज्ञान भारती संस्थान इन्द्रा मार्केट कोटा।

ठकाणो
525 कल्पना कुंज
छावनी कोटा

फोन न : 2362495,2383273,2322975

म्हांको गांव

गांव तो छोटो ई छै। दो सो अढाई सो घरां की बस्ती को। पण नांव छै बसन्त खेड़ो। पांच आखरां को नाँवं। आज म्हू बच्यार करूं छूं. कै गावं का बसाबा हाला बसन्तु रूत सूं कतना सराबोर होया होगा। ज्यां नै गांव बसाबा की ठांव बी बसन्त रूत जसी ई परखी। अर नांव बी ऊ सारू ई रखाण्यो च्बसन्त खेड़ो।छ
बसन्तु रूत की सोरम खेड़ा को कांकड़ पड़ताई गांव में आबा हाला नै होबा लाग ज्या छै। फैली परत गांव में जाबा हाली गड़ार सुखाल जी कै यां सूं फट जावै छै। गडार कै दोनी आडी आंबा का घणा रूंखड़ा, ज्यां की झामां आमी-सामी मल री छै। असी लागै छै जस्यां फावणा की ये सबसूं फैली अगवाणी करैगी।
आगै गड़ार कै दोनी आडी छोटी-बड़ी बाड्यां, ज्यां का कुवां पै चालता चड़सां का गीत घ्चडस्यूं-चडस्यूं फावणा का काना में मीठी राग को रस घोल दे छै।ङ बाड्यां की आडी झांकतांई तो फावणा को माथो ई चक्कर भूंली खा ज्या छै। थोड़ी बैर कै लेखै तो वां की सुरतां ई सोच में पड़ ज्या छै कै अबाऊम कसी रूत छै?
बांड्या में फसलां तो होवै ई छै पण मेर्यां पै सगली रूतां का फूलां का लैणयां में पौदा लगार मेर्या पै सबां की बादरवाल सजा दे छै। वां नै देखर मनख चक्कर भूलीं खा ज्या छै। कै अबार बसन्त रूत बी कोई नै पण फेर बी ऊ रूत का पसब, फल्यां पै भंवरा अर तीतर्या कस्यां भूंरया खा र्या छै? बाड्यां सूं आगै गांव का खलाण अर ऊं सूं अड़वां म्हांको गांव। गांव जैपर जस्यो तो कोई नै बसर्यो। आडो ऊभो ई छै। जी नै जसी ठाम देखी, वांई झूंपड़ा चुण घाल्या। कोई भलो मनख म्हांका गांव को नकसो बणावै तो भारतदेश जस्योई भाव-ताव बणैगो। हां, खहां कीबणावयट सगला गांव हालां की एक जसी धरमसाला की नांई छै। जाणै सब नै एको कर ल्यो होवै। च्यार खूंटी त्याग, जी में तीन आडी बण्या ओवरा। आगै बण्या अगलडाल्या। गाबा में आंगणों। आंगणा कै भड़ै पोल। बारणा में घुसता ई पोल के बारै कोनी आडी चूंतरा। फरक अतनो जरूर छै के कोई कै ज्याग बड़ी, अर कोई कै छोटी। पण बणावट एक स्यार की। मुकाम सूं भड़ै ढांढा-ढोरां का बाड़ा। बाड़ा में वणी सालां अर भसोरा।
बार-थ्वार, खास कर होली-दव्ली-संकर्यांत पै घर आंगणा नै देख्या ई भूख भागै। लप्या-पुत्या घर आंगणा। चूंतर्या अर आंगणा पै मंड्या भांत-भांत का मांडण्यां। चांदा पै मंण्ड्या मोरा-मोरड़ी। फाणी लाती पणग्यार्यां। चकवा-चकवी की जोड़ी। और बी घणी भांत का मांड्या देखर थोड़ी घणी बार वां नै देखबा कै लेखे मनख ठम खा ज्या छै। दो-च्यार घर तो ब्याव-सावा का बीत्या दनां की याद उजागर करता अपणै आप ई पछाणबा में आज्या छै। वां का बारणा कै दोनी आडी की भींत्यां पै मंड्या, रंग्या, चंग्या माँडम्या। बारणा पै रूप-रूप की पसबां अर पानड़ा की बणी बेलड्यां। बाजा बजाता बाजा हाला। दूंद-दुंदाला गणेस जी। बारणा पै आंबा का पानड़ा की बंधी बानदंरवाल। पोल का टापर पै हलदी सूं रंग्यो-चंग्यो तोरण अर ऊं कै दोनी आडी चंवर्यां की थड्यां। आंगणा में गड़्यो मैंडो अर ऊं पै धर्यो राता बटका सूं ढक्यो कलस-बजोरो। या बतावै छै कै यां का घर में कन्या को ब्याव छो ज्ये नमट्यो ई छै। आगणा में हल को मैंडो गड्यो होवै तो बतावै छै कै ई घर में छोरा को ब्याव होयो छै। ऊंडी उगणी बाणगंगा नन्दी की तीरां पै एक ऊंचा डोला पै बस्यो छै म्होंको गांव। डोल ऊंचो छै। ऊपर सपाट छै, पण नन्दी का कराडा़ घणा ऊंडा छै। कराडा सूं नन्दी की तली में झांक तांई झांई आवै छै। नन्दी सूं गांव की ऊंचाई पचास-स्याठ हात होगी। नन्दी घणी बड़ी ोत कोई नै, पण खाडी जसी बी कोई नै। बारा मास पाणी बै छैं। ऊंदाल में धार पतली हो ज्या छै पण जीव-जनावरां अर ढांढा-ढोरां कै पीबा का पाणी कमी न्है आवै। न्हाबा-धोबा का बी मनख्यां नै फोड़ा न्है पड़ै। नन्दी कै ढांवै दस-बार ज्यामूण्यां, सात-आठ आंबा, दस-पदंर बडबोर्या, च्यार-पांच पूली। आम्लयां, बूंल्या, खैंजड़ा का घणां रूंखडा ऊगर्या छै, ज्यां पै गांव का छोरा आरा काचा-पाका फलां नै भंभोड़ता खेलता फरै छै। वां नै धेकर जमनाजी की तीरां किसन जी अर ग्वाल-बालां का खेलबा की सुरतां करर मन घणा आणन्द का रस में डूब जावै छै। नंदी कै सायरैजसायरै झूंपड़यां की आडी जाबपा को गेलो छै। ऊं गेलो कै भड़ै ई, तीरां पै एक जुगादू बड़ को रूंख छै, जीं की छाया का आहरा नै देखर लागै छै जस्यां यो म्हांका गांव पै छत्तर-छाया करबा बेई अठफैर त्यार छै। ई कै तलै छोरा-छथोरी बड़ा-बूढ़ा गेलै-चलता मरद-बायरां, झगझघती दफैरी में साता लेबा बैठ जावै छै। गांव-घेर का ढांढा बी बैसक यां ई ल्ये छै।
गांव में एक कुवो अर एक बीवरी छै। कुवा को फाणी तो थोड़ो सोक खारो छै पण बीवरी को मीठो अर अन्न जराबा में घणो आछ्यो। नीड़ै ई पीपली को रूंख होबा सूं ऊंदाला में बी ह्वालां की नांई ठंडो रै छै। बू-बेट्यां ऊंदाला में रोटी पोतां-पोतां पसीना की मारी आकल कूटा में भर जावै छै तो दोड़र कांख में बेवड़ो अर हाथ सूं नेज का ढटकारा देती बीवरी पै पाणी भरवा चली जावै छछै। फेर पीपली कै तलै बैठर पसीनमो सुखावै, साता ले, पाछै बेवडो भरर बातां का पचेटा मारती घरां बावड़ै। सासू-नणद की कुणसी मारी उतावली बी करै। मन तो घड़ी दो घडी बतलाबा की करै, पण करै कांई?अब तो गांव में सरकार नै तीन हैन्ड-पम्प लगा द्यां पीपली का पखेरी बीवरी को फाणी पीबा नै तरस ग्या। लाड्यां नै बी घुंघटा छोड़ द्या। आकलकूटा कै तांई धता बता दी। घर-घर में बीजली का पंखा लाग ग्या। गैस चूला-चौका में आण बराजी।

न्याव

गांव कै बीचा-बीच एक हथाई छै। सायरै एक बड़ो भारी आमली को रूंख। अतरो मोटो छै कै च्यार जणा की बाथ में बी न्है मावै। हथाी का भाटा बी घणा जंगी अर अमघड़, चीकणा चट्टा छै। चूंतरो घणो बड़ो छै। पचास-स्याठ मनख तो आराम सूं बैठ जावै। हथाई पैई गांव हालां का छोटा बडा न्याव घ्दूध को दूध फाणी को फाणीङ की नांई होवै छै। म्हंनै एक बार की सुरतां छै कै काल्या माली का खेत में गोपाला जाट की गाय उलगी। काल्यो माली खेत में फेरो देबा ग्यो छो. गाय नै खेत में चरती देखतांई काल्या नै घ्ऊर करी न्है पूर, अर गाय कै आछी मोटी सोटी की भजेड़ दी।ङ सोटी अणा चूक ई गायी कू कूख्यां में असी पड़ी कै गाय भसैड़ी खार खेत में ई जा पड़ी। गाय का पेट में लुवारो छो। गाय नै ताफड़-तुफड़ करर थोड़ी बेर पाछै फूतल्यां फेर दी। गाय कै मरताई काल्यो पसीना में झाकराझींकरो होतो गांव में भाग ल्यो। ऊनै घरां या बात कोई सूं बी न्है खी। पूरो दन दमनो-दमनो रैर काट्यो।
काल्या का खैत कै नीडै छापरा पै सुख्या की छेल्या चर री छी। गाय कै सोटी देतो काल्यो सुक्खा नै देख ल्यो। जद ऊ छेल्यां नै खेत की आडी सूं घेरबा आयो छो। झांझर कै सुख्यो छेल्यां नै ग्वाडा़ में करर घरां आ र्यो छो तो गेला में माध्यो अर स्यामो मलग्यो। ुसख्या नै गाय मरबा की बात दोनी सूं खै दी। गांव में छै-छै फै-फै होबा लागी गी। बात काल्या का घरां तांई पगूई। ज्यात मं पूगी। काल्या का घर में तो सुणतांईं मातम माच ग्यो। जस्यां घर में कोई की मौत होगी होवै। काल्या कै तांई घ्घर नखालोङ मल ग्यो। गांव कै बारै मसाणां का डोल पै एक टापरी बणार वां ई ऊ का खाबा पीबा को अन्तज्याम कर द्यो। महीना-खाण पाछै काल्या का घर हाला नै गांव अर ज्याता हालां का हाथ जोड्या। हथाी पै भैला होबा को बलाओ द्यो गांव हाला रात में हथाई पै भेला होया। फरियादी बुलायो। फाणी को भर्यो लोठ्यो फरियादी का हाथ में म्हैलर सोगन ख्या। गाय कस्यां मरी? फरियादी नै बतांई कै गाय म्हारा ई हाथ सूं मरी छै। अणाचूक ई सोटी गाय की कूख्यां में पड़गी। गांव हांला नै फरियादी का मूंडा सूं सांची बात सुणी जी सूं डण्ड फोरो ई कर्यो। डण्ड छो स्वामण ज्यार कबूतरां ई पटकबो अर हरीद्वार में गंगाजी का असनान। फेर गावं हालां नै हत्यारा का हाथ सूं हथाी पै फाणी प्यो। भूंगड़ा ख्या। नांई नै हजामत बणाई। काल्या कै अर ऊंका घर हालां कै घणी साता आई। अन्तर आत्मा की सांच पै ई न्याव को रूंखड़ो टकर्यो छो। जीं में कसूरवार गरीब होवै छावै अमीर। सगलां नै एक स्यार को न्याव मलै छो। आज तो बरस धुल जावै छै। कचेड़्यां में जातां-जातां जूत्यां झारणा हो ज्या छै। घर सूं लेर कचेड़्या तांई रूपयां का ऊमरा ओर दे छै। फेर बी न्याव की गली सूं कसूरवार बचा ज्या छै अर बेकसूर नै जेल की सीकचां में बूज

डाकियो

म्हूं एक दन म्हारा भाई कै लेखै डौला जी गूजर के यां सूं दूध लेर आ री छी। गेलै आतां एक बैरूप्या की नांई का मनख ई देखर ठम खागी। बच्यार कर्यो कै आज बैरूपया नै कांई को सांग बणायो छै? माथो घणो खपायो पण सांग समज में नै आयो।
मनख को दरसाव छो। कांधा पै लांम्बी लाखड़ी धर्यां। लाखड़ी पै खाकी रंग को थेलो लटक र्यो छो। लाखड़ी का मूंडा पै म्हांकी गाय का मून्या का गला में बंध्या मोटा घूघरा जस्या ई तीन घूघर बंधर्या छा। ज्ये पगवाला की लारां की लारां छम-छम बाजै छा। लत्ता खाकी रंग का म्हारा दादा की स्काउट की पोसाक जस्या। पगां में बी खाकी रंग की ई पींड्यां में पट्टयां लपेट्यां। जस्यां रात में फहरो देबा हालो राठयां को दा मांग्यो लपेटै छै। मनख भाग्यो ई जार्यो छो जस्यां ऊं नै कोई पाछै सूं पकड़बा हालो आ र्यो होवै।
म्हार मनड़ा में जाणकारी लेबा की घणी आत-ऊती लाग री छी। घरां आतां ई जीजी कै तांई दूध को ग्लास पकड़ायो। अर बूजी-जीजी। आज बरूप्यो कांई को सांग बणार आयो छै री? जीजी बोली- घ्आयो होवैगोङ मनै घर का धन्धा की मारी बरूप्यो देखबा को टेम मलै छै? म्हारी जिज्ञासा की थोब बंधती जा री छी जिसूं पोल में हुक्को गुडगुड़ाता दाजी जा झंझोड्या अर वां कै तांई डाकिया को हवालो बतार बूजी क्यो जी दा जी आज बैरूप्यो खांईको सांग बणार आयो चो। हुक्का की डांडी सूं मूंडा हटार धूंधाडो छोड़डा दाजी बोल्या बेटा! ऊ बैरूप्यो कोई नै। आपणा गांव हालां का समचार का कागद ऊंका खाकी रंग का थैला में बूज र्या छै। सगलां गांव की डाक नै लार झूंपड़्यां जावैगो। दूजी ठांव सूं आबा हाली डाक नै लार य्हां संभलावैगो। म्हारै सगली बात समझ में आई। जद जार जीव नै साता आई। आबा-जाबा का साधन नै होबा सूं डाक मनखांय कै माथै आवै-जावै छी। फैलू पखेरू संदेसा लाता ले जाता सुण्यां छा। आज तो समचार खनाबा का भांत-भांत का साधन हो गया। गांव में बी बांच बार मोटरां आवै-जावै छै। टेलीफोन तो गांव-गांव में लाग ग्या। पण वां दना को ऊ डाकियो आज तांई याद आवै छै।

धूण्या

सुख शान्ति परेम त्याग सैयोग ज्ञान अर एकठ को प्रतीक छो म्हांको गांव। स्याला की रूत में नाला-नाला पाड़ा में धूण्यां घलै छी। पटेल जी के बारण की धूणी तो सगलां गांव की धूण्यां में सबसूं बड़ी छी। पाड़ा का मनख स्याला में खेत खलाण सूं नमटर रोटी-ओटी खायां पाछै, धूण्यां तापबा बैठ जावै छा। पाड़ा का छोरी-छोरी संध्या पड़तांई खाद कजोड़ो भरर धूण्यां सलगा दे छा। क्यों कै वां नै बी तो खयाण्या सुणबा में मलै छी। धूण्यां पै फ्हर रात तांई लोग बातां का पचेटा मारता रै छा। घणा ज्ञानी-ध्यानी, बड़ा-बूढ़ा ज्ञान-गरद की ख्याण्यां खैता रै छा। आपणी आप बीती सुणाता रै छा। अस्यां आपणा अनुभवां का दीपक सूं आगली पीढी ई उजास बांटता रै छा। सगला गांव की आछी-पूरी सुख-दुख ब्याव-सादी-मरण-परण कोरा गांव ई न्है सगला खेड़ा-खूँट परगणा की जाणकारी धूण्यां पै ई मलै छी। एक दूजा के सायरो लगाबा की सल्ला सूत हो तो। ई तणा सूं गांव की धूण्यां एकठ को मंच होबू करै छी। जसी यां दनां विधान सभा, संसद-भवन। यां में तो फेर बी आज खाल जूतम पैजार, गाल्यां गुथ्थम-गुथ्था चालै छै। अर यां नै बणाबा में और भेला करबा में करोड़ां रूपयां को खून होवै छै। पण म्हांका गांव की धूण्यां बना पीका कोडी खरच क्रायं विधान-सभा भवन संसद-भऊवन सूं कम न्हैं होवै छी।
पण आज का गांव म्हांका गांव जस्या न्है र्या। न्है धूण्यां री न्है धूण्यां का ताबा हाला र्या। न्है एक दूजा को दुख-दरद सुणबा को बंगत, न्है मनखायां कै गोड़े ज्ञान की दो बातां।
परेम की ठांम स्वारथ नै ले ली। भोलापणो चालाकी में बदल दग्यो। अहिंसा की ठाम हिंसा नै ले ली। हथायां पै दोब उग्याई। कचेड्यां का बारणा चौड़ा हो ग्या। म्हारा बाबा पढ्या-लख्या तो कोई नै छा पण गुण्या छा। जोतिस अर मौस को अंदाजो जीव जनावरपां का आसरा सूं अर तारा मण्डल में देखर लगा ले छा। ज्ञान की घणी बातां बतावै छा। ज्ञान अमल में बी छो। जस्यां चड्या झूल मं न्हावै तो फाणी बरस बा का बंधाण बंध र्या छै। पुरवाई चालगी तो फाणी आबा हालो छै। गेले चाल ग्यो। घ्रूहणी गाले दन बहत्तर टालेङ हरणी माथै आगी खास टेम। हरणी उग्याई खास टेम। साता रास्या ने पूंछडो उलाल द्यो तो खास टेम। कूकड़ो बोल ग्यो तो खास टेम। हरण बाई आडी खड़ ग्यो तो सुभ समचार। कागलो बो ग्यो तो फावणा गेले चाल र्या छै। अस्यां गांव का लोग पढ्या लख्या ने न्है होर बी ज्ञान गरद सूं भर्या छा बतां ई बातां में बना पोथी पानड़ा कै ज्ञान आगली पोथ नै सूंपता जावै छा। अर ई ज्ञान गरद नै फीड़ी दर फीडी फूगतो करबा को मंदरसो छी म्हांकी धूणयां आज अतनी पढायां अतना अनुसंधान, शिक्षण प्रशिक्षण होयां पाछै बी पोंथ्यां में छपी बातां नरी बार म्हां की भविस्य-बाण्यां फैल हो ज्या छै। मोसम को मिजाज पलटी खा ज्या छै। ई ग्यान सूं तोम हारा बाबा को सरोदा ई भला छा।

च्यार भजां जी को चोक

मझ गांव में चायर भजां जी का चोक में ई गांव का सगला भजन-भाव करबा हाला अर खलाड़ा भेला होवै छा। ऊंदाला में साख-बाड़ी को काम नमट्यां पाछै गांव का लोग मल-जुड़र सालवार रामलीला, रासलीला, मोरधज राजा, हरीचन्दर राजा, तेजाजी तो खदी ढोला-मारू का ख्याल तमासा करै छा। तमासा बतालाब हाला, जस्यां नोट्कयां हाला नटडा-नटड़ी बी सब ई चोक में ई करै छा। तेजाजी को नसाण बी च्यार भजांजी का चोक सूं ई सरू होर तेजा राजधणी का थानक पै जावै छो। न्हाण में रंग की खढा बी यां ई भरै छी। रूंखड़ा की झाम बी यां ई गाडी जावै छी। जीं पै गुड़ की भेली बांधी जावै छी। गुड़ की भेली खोलर ले जाबा हाला मरदां ने बायरां कामड्यां सूं् मार-मार-र अधमर्यो बी य्हांई करै छी। जे मरद कामड्यां की मार भगत लै छो, ऊ ई गुड की भेली खोलर ले जाबा में जीत जावै छो। ई करतब नै करबा हाला अर देखला हाला य्हांई भेला होवे चा। च्यार भजांजी का चोक में उगी जुदादी नीमड़ी पै चढ़र ई हर बोल गांव हाला सूं नीचे उतरबा का मनावण मनावणा करावै छौ। खदी-खदी तो तीन-तीन दन तांई रातर दन बना खायां-प्यां नीमड़ी बै बेठ्यो हरबोल-हरबोल करै छो। चोमासा में भागोत जी बी च्यार भजांजी का मन्दर पै ई बैठेे छी।
खदी-खदी दूजा गांव की कीर्त मंडल्यां, जनजागरण मंडल्यां समाज सुधार हाली मंड्लयां देस भगतां की मंण्डल्यां मन्दर पै ई ठहरती अर च्हां ई भजन भासण सरू करै छी। देस भगतां की मंण्डल्यां ने बी गांव की जनता में जागरती लाबा को देस के कारणै मर मटबा को घणो कारगर काम कर्यो चो। ये मंण्ड्लयां ढोलक पेटी सूं कीर्तन भजन सरू करै छी। गावं का लोग धरम-प्रेमी तो होवै ई छा। ढोलक, पेटी अर भजन का बोल सुणता ई गरर-गरर चोक में भेला होज्या छा। अर मण्डली का लोगां की लेरां की लेरां ई भजनां में झूमबा लाग जावै छा। मण्डजली का लोग भजन गाता-गाता गाबा-गाबा में देस भगती का गीत बी गाबा लाग जावै अर गांव का लोगां नै बी लेरां-लेरां गाबा के लेखे उकसाता। सब गाता-गाता झूम जावै छा। अस्यां गाव का लोगां में देस भगती का बच्यारां को बरबूल्यो उठाबा का उपाप करै छा।

जस्यां आजादी देवी आ भारत की ओर
राजा परथी राजा का जमाना सूं तू रूसगी
जद सूं तकदीर भारत वासियों की फूटगी
फूट की बीमारी आई परेम डोरी टूटगी
माली की रूखाली बना सारा शब्द भाग ग्या
भाग-भाग ग्या, जाग-जगा ग्या


घर में घुस ग्यो चोर आदाजी देवी आ भारती की ओर।ई तरां सूं मण्डली का लोग अण पढ्या गांव का लोंगा ई जोड़-तोड़ का गीत बणार भासण दैर एकठ की डोर में बांधबा का कुलाबा भड़ावै छा। ऊं जमाना में आज खाल के जस्यां गांव हाला में जागरती लाबा का साधन कोई नै छा। न्है अखबार, न्है टी.बी., रेडियो, अर न्है ई आबा-जाबा का साधन। गांव सहरां सूं कटर्या छा। गांव का घणा मनखां ने तो सहरां को मूंडो बी न्है देख्यो छो.ो रेलगाड़ी को कोरो नांव ई सुण्यो छो। असी टेम में गांव हाला ई एकठ की डोर में बांधबा का काम यां नींव का भाटा जस्या देस भगता नै कर्या। ज्यां नै न्है खाबा की सुध छी न्हैं नींद की सुध। देस की आजादी के आगे सब बातां फीकी छी। वां को एक ई सपनो छो देस की आजादी। आज वां को नांव कोई न्है जाणै। वै तो नींव का भाटा छा नींव में दबर रै ग्या। आज आजादी की जाजम पै बैठ्या छै नम्बरी लुच्चा लफंगा भ्रष्टाचारी। देस ई बेचबा हाला। ज्यां पै कचेड्‌यां में मुकदमा चाल र्या छा। थाणा में नामी अपरांध्यां की लेण में फोटू लाग र्या छै। ज्याकां काला कारनामा नतकै काला कागद करै छै।
वां देश भगतां की याद आता ई आपू ई माथो सरधा सूं झुक जावै छै। म्हारी आंख्या कै सामै च्यारभंजा जी को चोक जावै छै बच्यार आवै छै वां का त्याग की जड़ पाताल में खां तांई हरी रैगी। व्हांका पुन्न का फल खां तांई खावैंगा। जे आजाद देस में जी र्या छां। यां का पाप को फल देस नै डुबरो रैगो। पाप को भांडो तो एक दन फूटणो ई छै। अब तो भगवान ई एक आसरो छै। जे यां आंधा की आंख्यां खोलै। कान ऊंचा करै। देस भगतां का त्याग, सैयोग प्रेम का पाठ का पाना खोले।

बायरां को मेलो

मरदां को मलबो तो च्यार भजांजी का मंदरपै ई हो ज्या छो, पण बायरां को मलबो तीज, गणगौर अब बार-थ्वार पै ई होवै छो। अस्यां तो पणघट नन्दी-घांट बै बी मलबो हो तो रै छो, पण सगली बायरां को अकसमचै मलबो तो तीज-थ्वार पै ई होवै छो। तीजां गणगोर्या पै तो एक दन फैली नेगण जी सगला गांव में कोको देती फरै छी। कै क्हाज पूजा को बगत फलाणी बज्यां सू फलाणी बज्यां तांई छै। बेगा-बेगा नमटर पारीकां का नोरा में पधार ज्यो। तीजां अर गणगोर को थ्वार बायरां को घणो महताऊ होवै छै। ई लेखे बायरां दो-तीन दन फैली सूं ई न्हाबा धोबा माथो, मेहंदी, चूड़ो पतरी आद की त्यारी करबा में जुट जावै छै। सं दन तो त्यारी को होवै ई चै। सगली बायरां घणा उछाव सूं नक-छक सूं गेणो-गांठो फैर्यां सुहाग का सगला सणगार करती नुवा-नुवा गोटा का गाबा मरोड़र फहर्या हाथां में पूजा की थाल्यां ल्यां पूजा कबा जाती। वै पूजा-वूजा कर्यां पाछै सगली बारयां रैबार्यां की बगीची में ई बरत खोलती, वां ई हींदला घलता, नाचती-गूती हांसी-ठछोल्यां करै छी। मसत्यां मारै छी। स्याम की गोधूली की बगत तांई गीतां का झकोला देती। डील कै मरोड़ा देती। कोयल जस्या कण्ट सूं मीठी-मीठी राग हाला गीत गाती-गाती घरां बावड़ती। गीत का बोल अर राग सुणबा हालां का मन पै रस का धोरा देय छा। बार-थ्वार कै दना बायरां अतनी मसत्यां पै आ जावै की छी कै घर नै आता ई वा नै चूल्हा-चौका काम आछ्यो न्है लागै छो। ई वास्ते बायरां गीता का मस सूं गोठ्यां करबा की फरमायस मरदां सूं करै छी। जीं सूं थ्वार को भरपूर आणन्द ले सकै।बांगा में गोठ कराव ज्यो जी ढोला म्हांका रगड़ कसूमो घुटाय
गांव में आता-आता फाणी बरस बा लाग ज्या तो वै अपणा-अपणा ढोला सूं बादली की सिकायत करबा में बी नै चूकै छी गीत में ई गावै छी-
च्भंवर छांकी बादली नै म्हारो लहर्यो भजोयो जी राज
लहर्यो तो सूखे सामी साल में जी म्हारो, लहर-लहर जीव जायछ
भवर जी बी गोरड़ी नै राजी करबा में नै चूकै छा कै-
च्गोरी चन्ता जम करो जी लहर्यो फेर मंग द्यां जी राज
ई तरां थ्वार संस्कृति अर उछाव का मेला छा।छ
संकर्यांत को थ्वार बैण बेट्यां नै फीर में बलाबा को होवै छै। हर्या-भर्या खेत। पकावा पै आती साख नै देख-देखर मरद-बायरां का मन हरक सूं उछाला मारबा लाग जावै छै। बैण बेयट्यां का भाग सूं साख बी आची नबजै छै। ई खुसी में वां नै फीर में बलावै छै। घणी मान मनवार लाड़ करै छै। घर में आछ्याृआछ्या पकवान बणाबै खासकर खीचड़ो तो बणै ई बणै। क्योंकि खेत का च्यारूं खूंटा में ऊई तो गाड्यो जावै छै। बायरां राता-पेला, हर्या, गुलाबी राजस्थानी रंगा का भांत-भांत का लूगड़ा ओड्यां खेतां में लावणा पटकवा जावै छीतो असी लागे छी कै तीतर्यां एकठी होरर आच खेत में उडती फरी चै। बैलां का गलां में घूघर माला बांधर गाड्यां सणगारर मरद घर की सबी बायरां नै खेतां में ले जावै छा। तो उछाला मारती गाडी में बैठर लुगायां बी गाडी घेरबा हाला ने उकसावै छी।

रंगीला गाडीवान का थारी गाडी धीरां हांक रै।
गाडी थारी लाल गुलाबी, पाया लाल गुलाल रैं।
बैठण हाली पातली, ऊं की कमर्यां लुल-लुल जावै रै।
ई तरै सूं लोक-संस्कृति की पुजारण्यां छी गांव की बायरां। अब गांव का रंग बदल ग्या। गाडी बैलां की ठाम टेक्टरां ने ले ली। ओडण्यां उड़गी। साड्यां सरणागी। उगाड़ा माथा बाल कटार मेमा बणबा लागगी। खमार का घड़ा नै पोतार माण्डण्यां माण्डै जस्यां मूंडा पोतर मांडबा लागगी। असली की ठाम नकली नै लेली।
गणगोर्यां, तीजां को थ्वार बायरां कोई कोई नै। कंवारी छोर्यां बी आछ्या बर की चाहन्या में गोरी शंकर की पूजा करै छी। शंकर बारबती नै राजी करबा कै लेखै गणगोर कै सोला दन फैल्यां सूं ई सगली छोर्यां हल-मलर हाथां में दो-दो लोठ्या, छावै दो-दो कलस लेर नन्दी पै जावै छी। न्हायां धोयां पाछै लोठ्यां का बेवड़ा नै आंबा ज्यामूण्यां का पान पसबां सूं सजा-संवार माथा पै घरर लावै छी। गेला में सू ई गणगोर्या शंकर पारबती नै लडाती गणगोर का थानक पैजार पाती छडावे छी। च्गौर-गौर गणपति ईसर पूजे पारबतीछ का बोल थानक पै गरणा जावै छा। तीजा का बी बना फाणी प्यां करड़ा बरत करर आछ्या बर की चाहन्यां करै छी। तीजां गणगोर्यां के अलादा बी छोर्यां आछया बर मांगबा लेखै लग-लगता बारा मइना तांई का बरत करै ई। ज्ये सकर्यांत कै दन सूं सरू होर पाछी दूसरी सकर्यांत पै उजेवणो करर ई ये बरत पूरा होवै छा। जस्यां नत कै तुलसां जी सींचबो। तुलसी जी कै सात्या माडंबो। गऊ को खूंटो सींचबो। सामी रोटी दे बो। मून रखाण बो। तारा दातण करबो। ये सगला बरत ूंडा में कोई खाबा की चीज बना मल्यां ई करै छी। खदी भूल सूं कोई चीज मूंडा में ले ली तो बरत छूट जावै छा। फेर दूसरै बरस पूरा करण पड़ै छा। म्हारी जसी छोर्यां तो तीन-तीन च्यार-च्यार बरस लगा दे छी। बारा म्हींना कै अलावा एक-एक दन का बी घणा बर होवै छा। जस्यां अमकार्यो तुलसी बेवड़ो, सुख्या सोमवार, डूमड़ो।
आज की छोर्यां गांवा में बी बरतां की परथा भूलती जारी छै। सकर्यांत का बरतां का तो नांव बी न्है जाणै। म्हांकी अनमोल संस्कृति कै धीरां-धीरां धुन लाग तो जा र्यो छै।
छोर्यां का बरतां की नांई छोरा का बी बरत होवै छा। जस्यां चतरा चौथ। ई दन छोरा बरत करै छै। म्हतार्यां घणा लाड़ सूं वां का हाथां-पावां में मेंहदी मांडर नुवा लत्ता फेरार सजावै-संवारै छी। छोरा सबसूं फैली गरूजी की आसीस लेबा जावै छा अर सगला अनुशासन में एक लेण में ऊंबा होरर गरूजी की सरधा में डंडा जोड़ता गीत गावै छा-
समदर में म्हनै कोडी पाई, कोडी सी म्हूं घांस लायो
घांस सूं म्हनै गऊ चराई, गऊ नै दीनो दूधो
दूधा सूं म्हनै खीर पकाई, ताती-ताती गरूजी नै खवाई
ठंडी बासी मोर चुगाई, मोर नै दीनों पंखो
पंखा सूं म्हनै गरूजी, कै बाल उडाई
गरूजी नै दीनो बद्या, बद्या म्हारा पेट में ई तरां घणा आदर भाव सूं दण्डोत करर पाछै घर का बड़ा बूढा सूं आसीस लेता फेर अड़ोस्यां-पड़ोस्यां का घरां नै डंडा बजाता हल-मल गाता आणन्द ले छा। द्वाली पै बी छारां हाथां में हीड़ां लेर घरां-घरां आसीस लेबा जावै छा। दसरोवो मरदां अर छोरां को बीरता को थ्याव होवै छै। ई सारू दसरावा पै बी छोरा को घमो लाड-प्यार होवै छै। घणा हरक सूं हरक्या घोड़ा-घोड़्यांं पै सवार होर हाथ में सस्तर-पाती ल्यां बीरता बताता गारा का बण्यां रावण नै मारबा जावै छा। ई तरै सूं म्हां की थ्वार की संस्कृति मनखां का मन में घणो उमंग उछाव भर दे छी। आज थ्वारां ई मनाबा की कोरी रसमा पूरी करां छा। मन का जुड़ाव खारां सूं न्हा। न्हा थ्वारां ई मनाबा सूं होबा हाला फायदा र्या। घणा थ्वार ई तो भूलता जार्या छां। घणा तो भूली बी ग्या।

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